अपनी इस पुस्तक के प्रत्येक शब्द को, समस्त नारीजाती को समर्पित करती हूँ, जिसे हमारे देश में देवी माना जाता है। जीवनदायिनी, संरक्षक, मार्गदर्शक स्त्री - करुणा, ममता, संस्कार, सहनशीलता...
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अपनी इस पुस्तक के प्रत्येक शब्द को, समस्त नारीजाती को समर्पित करती हूँ, जिसे हमारे देश में देवी माना जाता है। जीवनदायिनी, संरक्षक, मार्गदर्शक स्त्री – करुणा, ममता, संस्कार, सहनशीलता और त्याग जैसे दैवीय गुणों से जुड़ी होती हैं।
परंतु साधारण मनुष्य से देवी बनने की यात्रा, कठिन और संघर्षपूर्ण है। पारिवारिक, सामाजिक, सांस्कृतिक विरासत की परंपरा, स्त्रीत्व के आदर्शों का निर्धारण करते हैं, जिसका अतिरिक्त दबाव स्त्रियों को मानसिक और शारीरिक प्रताड़ना देता है।
देवी, स्त्रीत्व की अनवरत यात्रा – यह विषय स्त्री के जन्म से लेकर मृत्यु तक के जीवनकाल के विभिन्न पहलुओं को गहराई से छूता है। स्त्री के शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक, सामाजिक, सांस्कृतिक स्थिति के गहन अध्ययन से ओत-प्रोत, भावनात्मक लघु कथाएं कल्पनीय हैं; किन्तु यथार्थवादी हैं।
स्त्री जन्म से ही लिंग आधारित अपेक्षाओं का शिकार होती है। किशोरवस्था में आते ही परिवार के द्वारा स्त्री को नियंत्रित किया जाता है। युवावस्था में अपनी स्वतंत्रता और आकांक्षाओं के द्वन्द्व को झेलती हुई स्त्री की स्थिति, विवाहरोपरांत और गंभीर हो जाती है।
फिर मातृत्व से भरी स्त्री, नव जीवन का संरक्षण करती है और अपना लंबा और बहुमूल्य समय शिशु के पालन-पोषण पर व्यतीत करती है। वृद्ध और परिपक्व हो जाने पर वह स्वीकृति, समर्पण और समझौते का रूप बन जाती है।
स्त्रीत्व की यह यात्रा सतत और परिवर्तनशील है, जिसे कहानीरूप में पढ़कर आप उसके विचारों, संघर्ष और संवेदनशीलता को समझ पाएंगें और सशक्तिकारण में अपना योगदान देंगें।
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