#आज_का_दिन
*सृजन यात्रा का एक स्मरणीय सोपान”
*पहला काव्य संग्रह “दिन कभी तो निकलेगा” प्रकाशित*
*मेरी प्रतिनिधि कविताओं का एक पुष्पगुच्छ*
(प्रणय प्रभात)
दोस्तों!
आज का दिन मेरी सृजन यात्रा का एक स्मरणीय दिन बन गया है। बीते 41 साल की सतत् साहित्य साधना के बाद आज मेरी अपनी पहली कृति प्रकाशित हो कर रसिक व सुविज्ञाजनों के हाथों तक पहुंचने के लिए सहज उपलब्ध है। एक छोटी सी सहयोग राशि के बदले आप तक पहुंचने के लिए उत्साहित।
स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि कृति या कविता मेरे लिए न कल आजीविका का माध्यम थी, न आज है, न आगे कभी होगी। वस्तुत: प्रयोजन कृति को मात्र सच्चे पाठकों के कर कमलों तक पहुंचाना है। जिसके लिए संग्रह के विक्रय से अच्छा माध्यम कोई और नहीं। जो क्रय करेगा, वो रूचिपूर्वक पढ़ेगा भी और सहेज कर रखेगा भी।
जहां तक संग्रह के विक्रय से मिलने वाली आंशिक राशि का प्रश्न है, उसका उपयोग मेरे प्यारे जीव जंतुओं व पंछियों के लिए होना पूर्व सुनिश्चित है। आपका छोटा सा अंशदान मेरे इस सेवा संकल्प व प्रकल्प के लिए एक संबल होगा। यह प्रण आगामी समय में प्रकाशित होने वाली अन्य कृतियों पर भी यथावत लागू होगा।
लगभग आधा सैकड़ा से अधिक संकलनों व अनेक पत्र पत्रिकाओं में सैकड़ों रचनाओं के प्रकाशन के बाद चाह एक निजी संग्रह के प्रकाशन की थी। तीन दशक की इस चाहे को आज साकार होते देखना मेरे लिए सुखद है, यह लिखना आवश्यक नहीं। तथापि इतना अवश्य कहना चाहता हूं कि आपका सहयोग व साथ मिला, तो कृति प्रकाशन की यह श्रृंखला और भी विस्तारित होगी।
कृति में मेरे कृतित्व के कुछ ही पक्षों को रेखांकित करती मेरी शाश्वत व प्रतिनिधि कविताएं सम्मिलित हैं। जिनमें धर्म, राष्ट्र, आध्यात्म, प्रेम, संस्कृति व जीवन दर्शन प्रमुख हैं। कृति “दिन कभी तो निकलेगा” की प्रत्येक कविता जीवन के विविध पक्षों की पैरोकारी करती हैं, जिनमें आस्था, जिजीविषा, आशा, आत्मविश्वास, आत्मसम्मान व संवेदना के साथ लोक हित प्रमुख हैं।
संग्रह प्रकाशन के लिए आवश्यक “श्रम व सामर्थ्य” मेरे आराध्य प्रभु श्रीराम जी द्वारा प्रदत्त है। “प्रेरणा” सदैव सी परम सदगुरुदेव श्री हनुमान जी महाराज की है। “अर्थ व प्रोत्साहन” के लिए आभारी हूं अपनी सहधर्मिणी श्रीमती प्रीति भटनागर का। काव्य रचनाओं को कृति का रूप देने के लिए सस्नेह साधुवाद बेटी निरुपम “नीति” को। जिसके श्रम के बिना यह संभव नहीं था मेरे लिए।
प्रकाशन के लिए आभार प्रकट करता हूं “साजित्यपीडिया” के प्रति, जो प्रकाशकों के रूप में इसके ऑनलाइन विक्रय व। प्रचार प्रसार हेतु अधिकृत है। चाहता था कि इस संग्रह की भूमिका कोई सशक्त व समकक्ष रचनाकार लिखता, पर ऐसा हो नहीं पाया। व्यावसायिक युग में समय कहां है समर्थजनों के पास। जिनके पास था, उनके पास मुझे सामर्थ्य का अभाव लगा। याचना स्वभाव में न थी, न की गई।
पराई भूमिका की कमी को आत्म कथ्य के साथ पूरा करने का तुच्छ सा प्रयास कृति के आरंभ में किया गया है। कैसा रहा, यह पड़ कर ही बता पाएंगे आप। संग्रह आईएसबीएन नंबर के साथ एक क्लिक पर आपके घर तक पहुंचेगा। इसके लिए आप क़्यूआर कोड की भी मदद ले सकते हैं।
मदद की आस अथवा याचना जीवन के विषम काल में नहीं की। आज भी नहीं करूंगा। एक स्वजन या शुभेच्छु के रुप में उत्साह को पंख देने का मन करे, तो कृति अवश्य मंगाएं। पढ़ें, पढाएं और बताएं कि प्रयास कैसा लगा? दावा नहीं करता, भरोसा दिला सकता हूं कि एक एक कविता की हर एक पंक्ति आपको एक दिशा देती प्रतीत होगी। विशेष रूप से आपके घर की उस अगली पीढ़ी को, जो जीवट व संघर्ष को जानती तक नहीं। परिणाम स्वरूप हताश होती है। अवसाद में आती है और आत्मघात तक से नहीं चूकतीं। शेष अशेष। जय राम जी की।
*संपादक”
*न्यूज़&व्यूज*
(मध्यप्रदेश)
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